Home Archives - SAHASTRA ASTRODIVINE SCIENCE INSTITUTE - ONLINE https://astro-vastu.com/hi/category/uncategorized/home/ Online Astrology & Vastu Shastra Certification Courses Wed, 07 Aug 2024 16:20:00 +0000 hi-IN hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7.1 https://i0.wp.com/astro-vastu.com/wp-content/uploads/2023/07/cropped-cropped-cropped-cropped-logo-small-size-sasi-2.jpg?fit=32%2C32&ssl=1 Home Archives - SAHASTRA ASTRODIVINE SCIENCE INSTITUTE - ONLINE https://astro-vastu.com/hi/category/uncategorized/home/ 32 32 221812330 गुरु तत्व का रहस्य ? https://astro-vastu.com/hi/2024/08/07/%e0%a4%97%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%81-%e0%a4%a4%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b0%e0%a4%b9%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%af/ https://astro-vastu.com/hi/2024/08/07/%e0%a4%97%e0%a5%81%e0%a4%b0%e0%a5%81-%e0%a4%a4%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b5-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b0%e0%a4%b9%e0%a4%b8%e0%a5%8d%e0%a4%af/#comments Wed, 07 Aug 2024 16:19:55 +0000 https://astro-vastu.com/?p=595 शास्त्रों में यह धारणा परिपुस्ट की गई है तथा लोगो के विचार में यह धारणा […]

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शास्त्रों में यह धारणा परिपुस्ट की गई है तथा लोगो के विचार में यह धारणा द्रढ. रहती है की गुरू एक ही हो सकता है परन्तु शास्त्रों के गहन अध्धययन से तथा जीवन में घटनाओं के अनुभव से यह पता चलता है गुरू एक नहीं अनेक हो सकते है – श्रीमद्भागवत के अनुसार पर्मावाधूत श्री दत्तात्रेय जी ने २४ गुरू किये थे।

कुलार्णव तंत्र के अनुसार गुरू छ: प्रकार के होते है?

प्रेरक: सूचाकश्चैव वाचको दर्शकश्ताथा I शिक्षको बोधकश्चैव षडेते गुरूव: स्मृता: I I

अर्थात प्रेरणा देने वाला ,सूचना ,देने वाला ,वक्ता ,दर्शक ,ज्ञाता शिक्षा देनेवाला ,आत्मवोध कराने वाला ये सव छ: प्रकार के गुरु होते है।
व्यवहारिक जगत मै सवसे पहले माता-पिता गुरु होते है I

पिता से ज्यादा माता नजदीक होती है I इसलिए माँ की जिम्मेदारी शिशु पर अधिक होती है I अत: नारी समाज की शिक्षा दीक्षा नैतिकता पूर्ण होनी चाहिए I जिससे की माँ अपने बच्चो को उचित शिक्षा प्रदान कर सके और हमारे धार्मिक ग्रंथो में एसे कई उदहारण मिलते है I माता मदालसा ,गोपीचंद की माता ,भक्त प्रह्लाद एवं ध्रुव की माताओं ने अपनी प्रतिभा एवं धर्मपूर्ण आचरण एवं ज्ञान की प्रेरणा से अपने पुत्रों को भवसागर से पार करा दिया I

तत्ववेत्ता माताओ में माता मदालसा का नाम उत्क्रस्ट स्थान पर है इन्होने अपने लोरियों के गीत के माध्यम से अपने छ: पुत्रों को आत्म ज्ञान से भर दिया था जिसके फलस्वरूप वे सव परमनिवृति पूर्वक जीवन-यापन करते हुए अंत में अपने सत्यस्वरुप में लीन हो गए और माता मदालसा ने अपने सातवे पुत्र का नाम अलर्क रक्खा तथा उसको राजनीति की शिक्षा देकर राजनीति के योग्य वनाया और यह भी ध्यान रक्खा की कही ये कही संसार में ही फस कर न रह जाये इस लिए उन्होंने अलर्क के गले में एक ताबीज डालदी और अलर्क से कहा की जव विपत्ति आये तो इसे खोलकर इसके अन्दर लिखी शिक्षा को ग्रहण करलेना इससे तेरा परम कल्याण होगा।

कालांतर में जव अलर्क पर विप्पत्ति आई तो उसने उस ताबीज को खोल कर देखा की उसमे एक कागज के टुकड़े में निम्नलिखित श्लोक लिखे थे।

संगः सर्वात्मनाहेयः सचेत् त्यक्तुं न शक्यते।स सद्भिःसह कर्तव्यः साधुसंगो हि भेषजम्॥

संग/आसक्ति सर्वथा त्याज्य है; पर यदि ऐसा शक्य न हो तो सज्जनों का संग करना । साधु पुरुषों का सहवास जडीबुटी है (हितकारक है) । सभी कामनाओं को छोड़ देना चाहिए यदि सभी कामनाओं को छोड़ने में असमर्थ हो तो मुमुक्षु की कामना करनी चाहिए मुमुक्षु की कमाना संसार की सभी कामनाओं को नष्ट करने की महान औषधि है।

गुरु व्रह्म्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा ।गुरु साक्षात् परम व्र्हम्म तसमई श्री गुरवे नम: ।।

अर्थात गुरु को व्रह्मा कहा गया है की जिस प्रकार व्रह्मा सकल स्रष्टि को जन्म देता है उसी प्रकार गुरु अपने शिष्य को ग्रहण करके उसमे संस्कारों का प्रत्यारोपण करके उसको नया जन्म देता है,उसे द्विज (द्वि मतलब दूसरा और ज मतलब जन्म ) बनाता है । इस लिए गुरु को व्रह्मा कहा गया है । और जिस प्रकार स्रष्टि का पालन भगवान् विष्णु करते है ।उसी प्रकार गुरु अपने शिष्य का समस्त भार अपने ऊपर ले लेता है इस लिए गुरु को विष्णु कहा गया है।

और भगवान् शंकर इस स्रष्टि का विनाश करते है और उन्ही की भाति गुरु अपने शिष्य में निहित समस्त विकारों का विनाश कर देता है एक प्रकार से वह अपने शिष्य के वर्तमान स्वरूप को समूल नष्ट करके उसका पुनः निर्माण कर देता है इस लिए गुरु को महेश या शिव कहा गया है ।

और एक पूर्ण सतगुरु ही किसी प्राणी को अबगमन के चक्कर से मुक्त कर सकता है इसलिए गुरु को साक्षात् पार व्रह्म परमेश्वर कहा गया है ।

इसको पड़ते ही मन में यह विचार आया कि लिखने वाले ने यह क्या लिख दिया । क्या सचमुच गुरु ऐसा होता है कि उसकी तुलना साक्षात् पार व्रह्म परमेश्वर से कर दी जाये मन ने कहा कि नहीं ये सच नहीं हो सकता तो अपनी नज़र को इधर-उधर दौड़ाया तो पाया कि कबीर दास जी तो यहाँ तक लिख गए है कि :-

सात समुद्र कि मसि करूँ लेखन सब वनराय । सब धरती कागज़ करूँ गुरु गुण लिखा न जाये ।।

लो भाई यह तो हद हो गयी कि गुरु में वह गुण भरे हुए है कि उन्हें लिखा ही नहीं जा सकता है । थोडा सा और गौर किया तो पाया कि नहीं कबीर दास जी तो गुरु को परमेश्वर से भी बड़ा वता रहें है ।

गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लागों पायें ।वलिहारी गुरु आपनेगोविन्द दियो मिलाय ।।

जब इस दोहे को ध्यान पूर्वक पढ़ा तो समहज आया की गुरु को इतना महान क्यों कहा गया है । सचमुच यदि गुरु इश्वर से मिला सकता है तो वोह इश्वर से बड़ा ही हुआ । और फिर ध्यान आया की कहीं पर पढ़ा है कि :-
अखंड मंडला कारम व्याप्तं एन चराचरम । तत्पदं दर्शितं येन तसमई श्री गुरवे नम: ।।

अर्थात सर्व व्यापी इश्वर को तत्व रूप में अंतर्घट में ही प्रत्यक्ष रूप से दिखा देने वाला ही पूर्ण सतगुरु होता है और हमें इश्वर दर्शन के लिए उसी पूर्ण सतगुरु कि शरण में जाना चाहिए । इस विषय में वहुत सारे लोग कहते हैं कि हम तो नित्य मंदिर जाते हैं और कई लोग कहते हैं कि हम मस्जिद, गुरुद्वारा और गिरजा घर जाते हैं तो फिर हमे गुरु के पास जाने कि क्या जरूरत है तो इस विषय में हमारे ग्रुन्थ कहते है कि :-

राम कृष्ण से को बड़े तिंहू ने गुरु कीन्ह । तीन लोक के नायका गुरु आगे आधीन ।।

अर्थात जब इश्वर चाहें खुद ही क्यों न धरती पर आये तो वोह खुद भी किसी पूर्ण गुरु के पास जाता है क्यों कि वह आपने आचरण के द्वारा मानव के लिए उद्धरण प्रस्तुत करता है कि आप इसी रास्ते पर चलो। किन्तु मानव राम -राम कृष्ण-कृष्ण तो करता है मगार जो राम या कृष्ण ने अपने जीवन में किया वह नहीं करता है।अता : हमें आवश्यकता है ऐसे किसी पूर्ण सत गुरु कि जो हमारे प्रज्ञा चक्षु खोल दे । हमारे दिव्य नेत्र खोल कर हमें हमारे अंतर्घट में ही परमात्मा का साक्षात्कार करा दे ।
अतः हम आशा करतें है कि की अव हमे गुरु तत्व का रहस्य समझ अगया होगा

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भगवान शंकर का रुद्राभिषेक कब होता है सबसे उत्तम? https://astro-vastu.com/hi/2024/08/07/%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b0%e0%a5%81%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%ad%e0%a4%bf%e0%a4%b7%e0%a5%87/ https://astro-vastu.com/hi/2024/08/07/%e0%a4%ad%e0%a4%97%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%a8-%e0%a4%b6%e0%a4%82%e0%a4%95%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%b0%e0%a5%81%e0%a4%a6%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%ad%e0%a4%bf%e0%a4%b7%e0%a5%87/#comments Wed, 07 Aug 2024 15:59:58 +0000 https://astro-vastu.com/?p=590 रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद केरुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं।सावन में रुद्राभिषेक करना ज्यादा […]

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रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के
रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं।
सावन में रुद्राभिषेक करना ज्यादा शुभ होता है रुद्राभिषेक कोई भी कष्ट या ग्रहों की पीड़ा दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है।
सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।
रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:।।
यो रुद्र: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशन:।
ब्रह्मविष्णुमयो रुद्र अग्नीषोमात्मकं जगत्।।
इसका अर्थ है कि सभी देवताओं में रूद्र समाहित हैं और सभी देवता रूद्र का ही अवतार है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश सभी रूद्र के ही अंश हैं। इसलिए रुद्राभिषेक के द्वारा ऐसा भी माना जाता है की सभी देवताओं की पूजा अर्चना एक साथ हो जाती है। हिन्दू धार्मिक मान्यतों के अनुसार मात्र रूद्र अवतार शिव का अभिषेक करके व्यक्ति सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। केवल रुद्राभिषेक के द्वारा शिव जी के साथ-साथ अन्य देवगणों की पूजा भी सिद्ध हो जाती है। रुद्राभिषेक के दौरान मनुष्य अपनी विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए भिन्न प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करते हैं।
अब समय आता है शिव जी का निवास देखें जब मनोकामना पूर्ति के लिए अभिषेक करना हो।
शिव जी का निवास कब मंगलकारी होता है? देवों के देव महादेव ब्रह्माण्ड में घूमते रहते हैं। महादेव कभी मां गौरी के साथ होते हैं तो कभी-कभी कैलाश पर विराजते हैं।
रुद्राभिषेक तभी करना चाहिए जब शिव जी का निवास मंगलकारी हो…।
हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और
नवमी को शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।
हर महीने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा,अष्टमी और अमावस्या को भी शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और एकादशी को
महादेव कैलाश पर वास करते हैं।
शुक्ल पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथि को
भी महादेव कैलाश पर ही रहते हैं।
कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी को शिव जी
नंदी पर सवार होकर पूरा विश्व भ्रमण करते हैं।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथि
को भी शिव जी विश्व भ्रमण पर होते हैं।
रुद्राभिषेक के लिए इन तिथियों में महादेव
का निवास मंगलकारी होता है!
शिव जी का निवास कब अनिष्टकारी होता है?
रुद्राभिषेक करने से पहले शिव के अनिष्‍टकारी निवास का ध्यान रखना बहुत जरूरी है…।
कृष्णपक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी को
भगवान शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं।
शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी और पूर्णिमा
को भी शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं।
कृष्ण पक्ष की द्वितीया और नवमी को महादेव
देवताओं की समस्याएं सुनते हैं।
शुक्लपक्ष की तृतीया और दशमी में भी
महादेव देवताओं की समस्याएं सुनते हैं ।
कृष्णपक्ष की तृतीया और दशमी को
नटराज क्रीड़ा में व्यस्त रहते हैं।
शुक्लपक्ष की चतुर्थी और एकादशी को
भी नटराज क्रीड़ा में व्यस्त रहते हैं!
*कृष्णपक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी को रुद्र भोजन करते हैं। शुक्लपक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी को भी रुद्र भोजन करते है।
इन तिथियों में मनोकामना पूर्ति के लिए अभिषेक नहीं करना चाहिए। फोटो सोर्स व्हाट्सएप
कब तिथियों का विचार नहीं किया जाता?

कुछ व्रत और त्योहार रुद्राभिषेक के लिए हमेशा शुभ ही होते हैं।उन दिनों में तिथियों का ध्यान रखने की जरूरत नहीं होती है…
शिवरात्री, प्रदोष और सावन के सोमवार
को शिव के निवास पर विचार नहीं करते ।
सिद्ध पीठ या ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में भी
शिव के निवास पर विचार नहीं करते।
रुद्राभिषेक के लिए ये स्थान और समय
दोनों हमेशा मंगलकारी होते हैं।
शिववास
मान्यता है की किसी कार्य विशेष के लिए संकल्पित शिव पूजा, रुद्राभिषेक, महामृत्युञ्जय अनुष्ठान आदि में शिव वास का विचार करना बहुत जरुरी होता है। शास्त्रों के अनुसार यह कहा गया है की भगवान शिव पूरे महीने में सात अलग-अलग जगह पर वास करते हैं। उनके वास स्थान से यह पता चलता है की उस समय भगवान शिव क्या कर रहे हैं और वह समय प्रार्थना के लिए उचित है या नहीं। आइये जानें कैसे की जाती है शिव वास की गणना, क्या है इसका फल और शिव पूजा में इसका महत्व।
शिव वास की गणना :
नारद जी द्वारा बतायी गई शिव वास देखने की विधि के लिए निम्न सूत्र है
तिथिं च द्विगुणी कृत्वा पुनः पञ्च समन्वितम ।
सप्तभिस्तुहरेद्भागम शेषं शिव वास उच्यते ।।
अर्थात्
सबसे पहले तिथि को देखें। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से पूर्णिमा को 1 से 15 और कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक 16 से 30 मान दें। इसके बाद जिस भी तिथि के लिए हमें देखना हो उसे 2 से गुणा करें और गुणनफल में 5 जोड़कर उसे 7 से भाग दें। शेषफल के अनुसार शिव वास जानें।
शिव वास का फल
कैलाशे लभते सौख्यं गौर्या च सुख सम्पदः ।
वृषभेऽभीष्ट सिद्धिः स्यात् सभायां संतापकारिणी।
भोजने च भवेत् पीड़ा क्रीडायां कष्टमेव च।
श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत्।।
शेषफल के अनुसार शिव वास का स्थान और उसका फल इस प्रकार है:
1 – कैलाश में : सुखदायी
2 – गौरी पार्श्व में : सुख और सम्पदा
3 – वृषारूढ़ : अभीष्ट सिद्धि
4 – सभा : संताप
5 – भोजन : पीड़ादायी
6 – क्रीड़ारत : कष्ट
0 – श्मशान : मृत्यु
शिव वास की शुभ तिथियां
उपरोक्त अनुसार शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथियां तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी एवं द्वादशी तिथियाँ शुभ फलदायी हैं। इन तिथियों पर किये गए काम्य एवं संकल्पित अनुष्ठान सिद्ध होते हैं। वहीं निष्काम पूजा, महाशिवरात्रि, श्रावण माह, तीर्थस्थान या ज्योतिर्लिङ्ग में शिव वास देखना जरुरी नहीं होता।
द्वादश ज्योतिर्लिंग, इनके उपलिंग, महाशिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि, सोमवार तथा सर्वसिद्ध वार्षिक उत्सव यथा बसन्त पंचमी, राम नवमी, कालरात्रि, मोहरात्रि, दारुणरात्रि इत्यादि अवसर/स्थान पर तथा नर्मदेश्वर लिंग और दैनिक शिवपूजा में शिववास देखे बिना रुद्र मंत्र से पूजा अर्चना मान्य है।
किन्तु पार्थिव शिव पूजा हेतु निश्चय रूप से शिव वास का चयन आवश्यक है।
शिव कृपा से आपकी सभी मनोकामना जरूर पूरी होंगी तो आपके मन में जैसी कामना हो वैसा ही रुद्राभिषेक करिए और अपने जीवन को शुभ और मंगलमय बनाइए।

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