रुद्राभिषेक में शुक्ल यजुर्वेद के
रुद्राष्टाध्यायी के मंत्रों का पाठ करते हैं।
सावन में रुद्राभिषेक करना ज्यादा शुभ होता है रुद्राभिषेक कोई भी कष्ट या ग्रहों की पीड़ा दूर करने का सबसे उत्तम उपाय है।
सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:।
रुद्रात्प्रवर्तते बीजं बीजयोनिर्जनार्दन:।।
यो रुद्र: स स्वयं ब्रह्मा यो ब्रह्मा स हुताशन:।
ब्रह्मविष्णुमयो रुद्र अग्नीषोमात्मकं जगत्।।
इसका अर्थ है कि सभी देवताओं में रूद्र समाहित हैं और सभी देवता रूद्र का ही अवतार है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश सभी रूद्र के ही अंश हैं। इसलिए रुद्राभिषेक के द्वारा ऐसा भी माना जाता है की सभी देवताओं की पूजा अर्चना एक साथ हो जाती है। हिन्दू धार्मिक मान्यतों के अनुसार मात्र रूद्र अवतार शिव का अभिषेक करके व्यक्ति सभी देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। केवल रुद्राभिषेक के द्वारा शिव जी के साथ-साथ अन्य देवगणों की पूजा भी सिद्ध हो जाती है। रुद्राभिषेक के दौरान मनुष्य अपनी विभिन्न कामनाओं की पूर्ति के लिए भिन्न प्रकार के द्रव्यों का प्रयोग करते हैं।
अब समय आता है शिव जी का निवास देखें जब मनोकामना पूर्ति के लिए अभिषेक करना हो।
शिव जी का निवास कब मंगलकारी होता है? देवों के देव महादेव ब्रह्माण्ड में घूमते रहते हैं। महादेव कभी मां गौरी के साथ होते हैं तो कभी-कभी कैलाश पर विराजते हैं।
रुद्राभिषेक तभी करना चाहिए जब शिव जी का निवास मंगलकारी हो…।
हर महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया और
नवमी को शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।
हर महीने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा,अष्टमी और अमावस्या को भी शिव जी मां गौरी के साथ रहते हैं।
कृष्ण पक्ष की चतुर्थी और एकादशी को
महादेव कैलाश पर वास करते हैं।
शुक्ल पक्ष की पंचमी और द्वादशी तिथि को
भी महादेव कैलाश पर ही रहते हैं।
कृष्ण पक्ष की पंचमी और द्वादशी को शिव जी
नंदी पर सवार होकर पूरा विश्व भ्रमण करते हैं।
शुक्ल पक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी तिथि
को भी शिव जी विश्व भ्रमण पर होते हैं।
रुद्राभिषेक के लिए इन तिथियों में महादेव
का निवास मंगलकारी होता है!
शिव जी का निवास कब अनिष्टकारी होता है?
रुद्राभिषेक करने से पहले शिव के अनिष्‍टकारी निवास का ध्यान रखना बहुत जरूरी है…।
कृष्णपक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी को
भगवान शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं।
शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी और पूर्णिमा
को भी शिव श्मशान में समाधि में रहते हैं।
कृष्ण पक्ष की द्वितीया और नवमी को महादेव
देवताओं की समस्याएं सुनते हैं।
शुक्लपक्ष की तृतीया और दशमी में भी
महादेव देवताओं की समस्याएं सुनते हैं ।
कृष्णपक्ष की तृतीया और दशमी को
नटराज क्रीड़ा में व्यस्त रहते हैं।
शुक्लपक्ष की चतुर्थी और एकादशी को
भी नटराज क्रीड़ा में व्यस्त रहते हैं!
*कृष्णपक्ष की षष्ठी और त्रयोदशी को रुद्र भोजन करते हैं। शुक्लपक्ष की सप्तमी और चतुर्दशी को भी रुद्र भोजन करते है।
इन तिथियों में मनोकामना पूर्ति के लिए अभिषेक नहीं करना चाहिए। फोटो सोर्स व्हाट्सएप
कब तिथियों का विचार नहीं किया जाता?

कुछ व्रत और त्योहार रुद्राभिषेक के लिए हमेशा शुभ ही होते हैं।उन दिनों में तिथियों का ध्यान रखने की जरूरत नहीं होती है…
शिवरात्री, प्रदोष और सावन के सोमवार
को शिव के निवास पर विचार नहीं करते ।
सिद्ध पीठ या ज्योतिर्लिंग के क्षेत्र में भी
शिव के निवास पर विचार नहीं करते।
रुद्राभिषेक के लिए ये स्थान और समय
दोनों हमेशा मंगलकारी होते हैं।
शिववास
मान्यता है की किसी कार्य विशेष के लिए संकल्पित शिव पूजा, रुद्राभिषेक, महामृत्युञ्जय अनुष्ठान आदि में शिव वास का विचार करना बहुत जरुरी होता है। शास्त्रों के अनुसार यह कहा गया है की भगवान शिव पूरे महीने में सात अलग-अलग जगह पर वास करते हैं। उनके वास स्थान से यह पता चलता है की उस समय भगवान शिव क्या कर रहे हैं और वह समय प्रार्थना के लिए उचित है या नहीं। आइये जानें कैसे की जाती है शिव वास की गणना, क्या है इसका फल और शिव पूजा में इसका महत्व।
शिव वास की गणना :
नारद जी द्वारा बतायी गई शिव वास देखने की विधि के लिए निम्न सूत्र है
तिथिं च द्विगुणी कृत्वा पुनः पञ्च समन्वितम ।
सप्तभिस्तुहरेद्भागम शेषं शिव वास उच्यते ।।
अर्थात्
सबसे पहले तिथि को देखें। शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से पूर्णिमा को 1 से 15 और कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक 16 से 30 मान दें। इसके बाद जिस भी तिथि के लिए हमें देखना हो उसे 2 से गुणा करें और गुणनफल में 5 जोड़कर उसे 7 से भाग दें। शेषफल के अनुसार शिव वास जानें।
शिव वास का फल
कैलाशे लभते सौख्यं गौर्या च सुख सम्पदः ।
वृषभेऽभीष्ट सिद्धिः स्यात् सभायां संतापकारिणी।
भोजने च भवेत् पीड़ा क्रीडायां कष्टमेव च।
श्मशाने मरणं ज्ञेयं फलमेवं विचारयेत्।।
शेषफल के अनुसार शिव वास का स्थान और उसका फल इस प्रकार है:
1 – कैलाश में : सुखदायी
2 – गौरी पार्श्व में : सुख और सम्पदा
3 – वृषारूढ़ : अभीष्ट सिद्धि
4 – सभा : संताप
5 – भोजन : पीड़ादायी
6 – क्रीड़ारत : कष्ट
0 – श्मशान : मृत्यु
शिव वास की शुभ तिथियां
उपरोक्त अनुसार शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथियां तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी एवं द्वादशी तिथियाँ शुभ फलदायी हैं। इन तिथियों पर किये गए काम्य एवं संकल्पित अनुष्ठान सिद्ध होते हैं। वहीं निष्काम पूजा, महाशिवरात्रि, श्रावण माह, तीर्थस्थान या ज्योतिर्लिङ्ग में शिव वास देखना जरुरी नहीं होता।
द्वादश ज्योतिर्लिंग, इनके उपलिंग, महाशिवरात्रि, मासिक शिवरात्रि, सोमवार तथा सर्वसिद्ध वार्षिक उत्सव यथा बसन्त पंचमी, राम नवमी, कालरात्रि, मोहरात्रि, दारुणरात्रि इत्यादि अवसर/स्थान पर तथा नर्मदेश्वर लिंग और दैनिक शिवपूजा में शिववास देखे बिना रुद्र मंत्र से पूजा अर्चना मान्य है।
किन्तु पार्थिव शिव पूजा हेतु निश्चय रूप से शिव वास का चयन आवश्यक है।
शिव कृपा से आपकी सभी मनोकामना जरूर पूरी होंगी तो आपके मन में जैसी कामना हो वैसा ही रुद्राभिषेक करिए और अपने जीवन को शुभ और मंगलमय बनाइए।

One Reply to “भगवान शंकर का रुद्राभिषेक कब होता है सबसे उत्तम?”

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